खंजर तेरे से अब मेरा सर क्यों नहीं जाता,
शर्मिंदा हूँ मैं डूब के मर क्यों नहीं जाता,
दिल टूट गया जिस्म में फिर दिल नहीं रहा,
गुज़रा हूँ परेशानी से गुज़र क्यों नहीं जाता
शर्मिंदा हूँ मैं डूब के मर क्यों नहीं जाता,
दिल टूट गया जिस्म में फिर दिल नहीं रहा,
गुज़रा हूँ परेशानी से गुज़र क्यों नहीं जाता
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