अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए,
जिसमे इंसान को इंसान बनाया जाए।
जिसकी खुशबू से से महक जाये
पड़ोसी का भी घर,
फूल इस किस्म का हर सिम्त
खिलाया जाए ।
आग बहती है यहाँ गंगा मे, झेलम मे भी,
कोई बतलाये, कहाँ जाके नहाया जाए।
प्यार का ख़ून हुआ क्यो ये समझने के लिए,
हर अँधेरे को उजाले मे बुलाया जाए।
मेरे दुख़-दर्द का तुझ पर हो असर कुछ ऐसा,
मै रहूँ भूखा तो तुझसे भी न खाया जाए ।
जिस्म दो होके भी, दिल एक हो अपने ऐसे,
मेरा आँसू तेरी पलको से उठाया जाए।
गीत उन्मन है, ग़ज़ल चुप है, रुबाई है दुखी,
ऐसे माहौल मे `अशोक' को बुलाया जाये ॥
जिसमे इंसान को इंसान बनाया जाए।
जिसकी खुशबू से से महक जाये
पड़ोसी का भी घर,
फूल इस किस्म का हर सिम्त
खिलाया जाए ।
आग बहती है यहाँ गंगा मे, झेलम मे भी,
कोई बतलाये, कहाँ जाके नहाया जाए।
प्यार का ख़ून हुआ क्यो ये समझने के लिए,
हर अँधेरे को उजाले मे बुलाया जाए।
मेरे दुख़-दर्द का तुझ पर हो असर कुछ ऐसा,
मै रहूँ भूखा तो तुझसे भी न खाया जाए ।
जिस्म दो होके भी, दिल एक हो अपने ऐसे,
मेरा आँसू तेरी पलको से उठाया जाए।
गीत उन्मन है, ग़ज़ल चुप है, रुबाई है दुखी,
ऐसे माहौल मे `अशोक' को बुलाया जाये ॥
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