छूट पर लिया था जो सामान वो दूकान पर ही छूट गया,
बचाने आया था जो शख्स कल मुझे, आज वही लूट गया.
मैं तो समझ नहीं पाता हूँ दुनिया की बहुत सी बातें अब भी,
लोगों की उम्मीदों पर खरा न उतरा, मुझसे हर कोई रूठ गया.
रात के अँधेरे से नहीं, दिन के उजाले से डरता हूँ मैं सच में,
शराफत की दुहाई देने वालों के कारण ही मेरा दिल टूट गया.
बेवज़ह दौड़ने या उड़ने में रखा क्या है ? कोई बतलायेगा ?
वो आधार जिस पर टिका था मेरा वजूद, हाथ से छूट गया.
हल्की-फुल्की बातें करने लगे हैं समाज को रास्ता दिखाने वाले,
आदर्श मानते थे ख़ुशी से जिसे सब, उसका भी भांडा फूट गया.
उदय भानु पांडे.
बचाने आया था जो शख्स कल मुझे, आज वही लूट गया.
मैं तो समझ नहीं पाता हूँ दुनिया की बहुत सी बातें अब भी,
लोगों की उम्मीदों पर खरा न उतरा, मुझसे हर कोई रूठ गया.
रात के अँधेरे से नहीं, दिन के उजाले से डरता हूँ मैं सच में,
शराफत की दुहाई देने वालों के कारण ही मेरा दिल टूट गया.
बेवज़ह दौड़ने या उड़ने में रखा क्या है ? कोई बतलायेगा ?
वो आधार जिस पर टिका था मेरा वजूद, हाथ से छूट गया.
हल्की-फुल्की बातें करने लगे हैं समाज को रास्ता दिखाने वाले,
आदर्श मानते थे ख़ुशी से जिसे सब, उसका भी भांडा फूट गया.
उदय भानु पांडे.
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