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गमों में डूबे तो फिर जगमगा के निकले हैं ... यहाँ डूबे थे ... बड़ी दूर जा के निकले हैं .... तेरी बाहों में बड़े प्यार से आये थे मगर .. तेरे पंजो से बहुत छटपटा के निकले हैं ... तूने भी दिल को दुखने की इन्तहा कर दी... हम भी महफ़िल से मगर मुस्कुरा के निकले हैं .. कई लोगो से मेरी नौकरी की बात हुई ... बहुत से काम तो हाथो में आ के निकले हैं ... मेरे ही ज़ब्त ने बेचैन किया है तुझको .. ये तेरे आंसू मुझे आजमा के निकले हैं ... बड़े तैराक हैं ये मैंने खुद भी देखा है ... यहाँ कूदे थे .. बहुत दूर जा के निकले …
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भला ग़मों से कहाँ हार जाने वाले थे हम आंसुओं की तरह मुस्कुराने वाले थे हमीं ने कर दिया एलान-ए-गुमराही वरना हमारे पीछे बहुत लोग आने वाले थे इन्हें तो ख़ाक में मिलना ही था, कि मेरे थे ये अश्क कौन से ऊंचे घराने वाले थे उन्हें करीब न होने दिया कभी मैंने जो दोस्ती में हदें भूल जाने वाले थे मैं जिनको जान के पहचान भी नहीं सकता कुछ ऐसे लोग, मेरा घर जलाने वाले थे हमारा अलमिया ये था, की हमसफ़र भी हमें वही मिले, जो बहुत याद आने वाले थे [अलमिया=विडम्बना] "वसीम" कैसी ताल्लुक की राह थी जिसमें वह…
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बहुत दिनों बाद पायी फुर्सत, तो मैने खुद को पलट के देखा , मगर मै पहचानता था जिस को, वो शक्स अब कहीं नहीं है .
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