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वो ग़ज़ल पढने में लगता भी ग़ज़ल जैसा था, सिर्फ़ ग़ज़लें नहीं, लहजा भी ग़ज़ल जैसा था ! वक़्त ने चेहरे को बख़्शी हैं ख़राशें वरना, कुछ दिनों पहले ये चेहरा भी ग़ज़ल जैसा था !
तुमसे बिछडा तो पसन्द आ गयी बेतरतीबी, इससे पहले मेरा कमरा भी ग़ज़ल जैसा था !
कोई मौसम भी बिछड कर हमें अच्छा ना लगा, वैसे पानी का बरसना भी ग़ज़ल जैसा था !
नीम का पेड था, बरसात भी और झूला था, गांव में गुज़रा ज़माना भी ग़ज़ल जैसा था !
वो भी क्या दिन थे तेरे पांव की आहट सुन कर, दिल का सीने में धडकना भी ग़ज़ल जैसा था !
इक ग़ज़ल देखती रहती थी दरीचे से मुझ…
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