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अब उससे राबता भी नहीं, वो मेरा कोई था भी नहीं है वो बहोत ज़्यादा अच्छा, पर मैं इतना बुरा भी नहीं
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कभी सोचा भी है तुने, की एक मग़रूर सी लड़की,,, न जाने क्यूँ तेरे हर हुक्म की तामील करती है....
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ज्यादा मिठाई अच्छी नहीं लगती झूठी वाहवाही अच्छी नहीं लगती सच, हक में .. फायदेमंद भी, पर हमें कड़वी दवाई अच्छी नहीं लगती तुझे ही हो मुबारक़ बुज़ुर्गों की हवेली ये दीवार मेरे भाई अच्छी नहीं लगती मोहब्बत में तकरार लाज़मी है मगर पर अब ये लड़ाई अच्छी नहीं लगती लुत्फ़ आता है हमें भी यूँ तो पर हरदम बुराई अच्छी नहीं लगती किसे है गुरेज़ ठहाकों कहकहों से पर जगहंसाई अच्छी नहीं लगती कुबूल है तेरी सारी बेवफ़ाइयां, ऐ दोस्त तेरे मुंह से सफाई अच्छी नहीं लगती चुरा ली नींदे नरम पलंग ने, पर क्या करें घर में अब च…
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उस काँच के गिलास में पड़ी, गरम चाय के दो घूंटो में ही थी, और तुम ज़िन्दगी को कहाँ कहाँ ढूंढते रहे...!!!”
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तुम्हारी ये हिम्मत ही हमें हिम्मत देती है, अपने ही सहारे हम चले होते, तो गिर जाते.. (अपने सभी प्यारे फोल्लोवेर्स के नाम.. )
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साँस उलझी.. कभी होठों पे तबस्सुम आया.......... यूँ भी अक्सर तेरे आने की.. खबर आई है........
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गुलाबी गाल.. लाल आँखें... और होंठ शबनमी......... पी के आये हो.... या खुद ही शराब हो..........
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मेरा क़लम मेरे जज़्बात माँगने वाले मुझे न माँग मेरा हाथ माँगने वाले ये लोग कैसे अचानक अमीर बन बैठे ये सब थे भीक मेरे साथ माँगने वाले तमाम गाँव तेरे भोलपन पे हँसता है धुएँ के अब्र से बरसात माँगने वाले नहीं है सहल उसे काट लेना आँखों में कुछ और माँग मेरी रात माँगने वाले कभी बसंत में प्यासी जड़ों की चीख़ भी सुन लुटे शजर से हरे पात माँगने वाले तू अपने दश्त में प्यासा मरे तो बेहतर है समंदरों से इनायात माँगने वाले - ज़फ़र गोरखपुरी
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क्या उम्मीद करे हम उन से जिनको वफ़ा मालूम नहीं ग़म देना मालूम है लेकिन ग़म की दवा मालूम नहीं जिन की गली में उम्र गँवा दी जीवन भर हैरान रहे पास भी आके पास न आये जान के भी अंजान रहे कौन सी आख़िर की थी हमने ऐसी ख़ता मालूम नहीं ऐ मेरे पागल अर्मानों झूठे बंधन तोड़ भी दो ऐ मेरी ज़ख़्मी उम्मीदों दिल का दामन छोड़ भी दो तुम को अभी इस नगरी में जीने की सज़ा मालूम नहीं - ज़फ़र गोरखपुरी
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"दास्ताँ अधूरी हमारी मोहब्बत में रह गयी , वो जालिम ज़माने को अपनाने में रह गयी, आज वही शक्स मेरी न सुनता है न कहता है , मै ताउम्र जिनकी बातो में रह गयी , जिन्दगी आसान ही थी तुमने इश्क से उलझा दिया, अपनी मोहब्बत सवालो-जवाबो में रह गयी , कहता रहा मै उसको मुझपे ऐतबार कर , और वो मशरूफ इल्जामो में रह गयी, तालीम छोड़िये हमने लोगो को पढ़ के जाना है, दुनिया में अच्छाई किताबो में रह गयी "..
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मेरी लाश लेने आप मत आना, कुलबीर को भेज देना, वरना आपको रोता देख लोग कहेंगे की 'देखो भगत सिंह की माँ रो रही है' -शहीद ऐ आज़म भगत सिंह
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उनसे मिलिए जो यहाँ फेर-बदल वाले हैं हमसे मत बोलिए हम लोग ग़ज़ल वाले हैं कैसे शफ़्फ़ाफ़ लिबासों में नज़र आते हैं कौन मानेगा कि ये सब वही कल वाले हैं लूटने वाले उसे क़त्ल न करते लेकिन उसने पहचान लिया था कि बग़ल वाले हैं अब तो मिल-जुल के परिंदों को रहना होगा जितने तालाब हैं सब नील-कमल वाले हैं यूँ भी इक फूस के छप्पर की हक़ीक़त क्या थी अब उन्हें ख़तरा है जो लोग महल वाले हैं बेकफ़न लाशों के अम्बार लगे हैं लेकिन फ़ख्र से कहते हैं हम ताजमहल वाले हैं https://www.facebook.com/Munavvarraana
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